मृत्युभोज एक सामाजिक अभिशाप – डॉ राजेन्द्रसिंह सोलंकी गुडामालानी

मृत्युभोज का संक्षेप में अर्थ है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो परिवार को मृतक आत्मा की शांति के नामित बारहवे दिन वहां एकत्रित नाते रिश्तेदारों को भोजन उपलब्ध कराना। यह प्रथा भारतीय संस्कृति में पुराने दौर से चल रहा है। हालांकि, विश्वास किया जाता है कि इसका पालन करने से मृतक के आत्मा को शांति मिलती है और उसके परिवार को दुख से राहत मिलती है। जबकि आधुनिक समाजवादी लोगों का मानना है कि यह प्रथा केवल अंधविश्वास और कलंक को बढ़ावा देती है। वे इसे एक प्राचीनतम कलंक मानते हैं जो समाज को पीड़ित करता है और मृतक के परिवार को गहरे आर्थिक दल दल में धकेलने का कार्य कर्र्ता है !
पिछले कुछ दशकों में भारतीय समाज में मृत्युभोज की प्रथा के खिलाफ अनेक समाजवादी लोगों की आवाज़ बढ़ गई है। यह प्रथा उन्हें एक अच्छाई से दूर करके उन्हें आंतरिक दुखी कर देती है। इसे बदलने की मांग का समर्थन करने वाले इन लोगों के मुताबिक, मृत्युभोज एक अन्धविश्वास और कलंक है।
मृत्युभोज के पक्ष में होने वाले लोगों का मानना है कि यह प्रथा एक समरस और समर्पित समाज का पहला चरण है, जो एक व्यक्ति के निधन पर उसके परिवार का साथ देता है। इसे धार्मिक आदर्शों और परंपरागत मूल्यों के आधार पर किया जाता है जो समाज की एकता और संबल का प्रतीक है।
मृत्युभोज प्रथा के खिलाफ आंदोलन का सामाजिक संकेत के रूप में उभरना समाज के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है। यह आंदोलन समाज में जागरूकता बढ़ा रहा है और लोगों को इस प्रथा के विरुद्ध विचार करने पर मजबूर कर रहा है। जबकि कुछ लोग इसे रखे रहने की परंपरा का समर्थन करते हैं, तो कुछ लोग इसे समाज के लिए एक विकार के रूप में देखते हैं।
मृत्युभोज की प्रथा एक विवादास्पद विषय है जिस पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। इसे समाज की बेहतरी के लिए समाधान ढूंढने के लिए विचार करने की जरूरत है, ताकि हम एक स्वस्थ और संतुलित समाज का निर्माण कर सकें।
सही मायने में मृत्युभोज प्रथा एक ऐसी समाजिक प्रथा है, जिसको निभाने के चक्कर में कई बार परिवार आर्थिक रूप से बर्बाद हो जाते है जो कालान्तर में समाज में विभिन्न समस्याओं को पैदा कर सकती है। इस प्रथा को रोकने के लिए समाज को जागरूक होना महत्वपूर्ण है। इसके कुछ बिन्दु निम्नाकित हो सकते है
शिक्षा और जागरूकता: समाज में लोगों को मृत्युभोज प्रथा के बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में इसे एक समाजिक विषय के रूप में शामिल किया जा सकता है ताकि युवा पीढ़ी इसे समझे और उसके विरुद्ध माहोल बनाए
समाजिक संगठनों का समर्थन: समाज में मृत्युभोज प्रथा को रोकने के लिए समाजिक संगठनों को आगे आना चाइए । इन सामाजिक संगठनों के माध्यम से लोगों को इस प्रथा के नकारात्मक पहलुओं के बारे में जागरूक किया जा सकता है और लोगो को इस प्रथा को छोड़ने के बारे में प्रोत्साहित किए जा सकता हैं।
धार्मिक नेताओं और आचार्यों की सहायता: अपने आसपास के धार्मिक मठ मंदिरों के मठाधिशों व धार्मिक नेता और आचार्यों को भी इस मुद्दे को उठाने और इस प्रथा को रोकने के लिए आगे आकर समाज को इस विकृति से बचाव के लिए तैयार करना चाहिए
स्थानीय सरकारों को भी मृत्युभोज प्रथा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए नियमों और कानूनों की पालना सुनिश्चित हो इसकी व्यापक व्यवस्था कर इसे अवैध घोषित कर भारी दंड लगाया जा सकता है |
मृत्यु भोज को सामाजिक स्तर पर रोकने के लिए, हमें समाज के सभी सदस्यों को जागरूक बनाने की आवश्यकता होती है और इस मुद्दे को लोगों के बीच चर्चा का विषय बनाना होगा। आजकल समाज में जाग्रति आ रही है फिर भी कुछ जगहों पर मृत्यु भोज के नाम पर पुराणी लकीर पीटी जा रही है, जिससे न केवल व्यक्ति के परिवार को परेशानी होती है, बल्कि इससे समाज को भी भारी नुकसान होता है। मृत्यु भोज के कारण होने वाली खर्च, खाने-पीने की चीजों के बर्बाद होने, खाने के नुकसान से स्वास्थ्य को प्रभावित होना आदि समस्याएं खड़ी होती हैं।
मृत्यु भोज को रोकने के लिए हमें सभी समाज के सदस्यों को एकत्रित करके इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए। लोगों को इस मुद्दे की गंभीरता को समझाने के लिए आपसी सहयोग और समर्थन की जरूरत है। समाज के नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों को भी इस मुद्दे को उठाने और इसे रोकने के लिए कदम उठाने में नेतृत्व करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
मृत्यु भोज को रोकने के लिए हमारे समाज में एक जागरूकता अभियान की जरूरत है। इन उपायों के माध्यम से समाज में मृत्युभोज प्रथा को रोकने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं। इससे न केवल परिवार का आर्थिक बोझ कम होगा, बल्कि समाज में समरसता और सामाजिक समृद्धि की वृद्धि होगी।